फिल्म को थिएटर में रिलीज़ कैसे किया जाता है?
एक फिल्म को सिनेमाघरों तक पहुंचाना सिर्फ 'बटन दबाने' जितना आसान नहीं है, बल्कि यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। इसमें कई चरण और बहुत से लोगों का सहयोग शामिल होता है। आइए, इस पूरी प्रक्रिया को विस्तार से समझते हैं।
1. फिल्म का निर्माण और सेंसर बोर्ड से प्रमाणन
फिल्म निर्माण
सबसे पहले, एक फिल्म का निर्माण होता है। इसमें स्क्रिप्ट लिखने से लेकर शूटिंग, संपादन, संगीत, विजुअल इफेक्ट्स (VFX) और अन्य पोस्ट-प्रोडक्शन का काम शामिल है। यह वह चरण है जहाँ एक विचार को स्क्रीन पर साकार किया जाता है।
सेंसर बोर्ड (CBFC) से प्रमाणन
फिल्म पूरी होने के बाद, इसे केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) को दिखाया जाता है। सेंसर बोर्ड का काम यह सुनिश्चित करना है कि फिल्म सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए उपयुक्त हो। वे फिल्म में किसी भी आपत्तिजनक सामग्री की जांच करते हैं और इसे एक उपयुक्त प्रमाणपत्र देते हैं (जैसे U, U/A, A, S)। बिना सेंसर सर्टिफिकेट के कोई भी फिल्म भारत में रिलीज़ नहीं हो सकती।
2. वितरक (Distributor) की भूमिका
वितरक से संपर्क
फिल्म निर्माता अपनी बनी हुई फिल्म को वितरकों के पास ले जाते हैं। वितरक ऐसी कंपनियां होती हैं जो फिल्म निर्माताओं और सिनेमाघरों के बीच एक कड़ी का काम करती हैं। वे या तो फिल्म को खरीदते हैं या उसके वितरण अधिकार लेते हैं।
वितरण अधिकारों का निर्धारण
वितरक यह तय करते हैं कि फिल्म को किस क्षेत्र में, कितने समय के लिए और किन माध्यमों (जैसे थिएटर, टीवी, होम एंटरटेनमेंट, OTT) पर रिलीज़ किया जाएगा। वे फिल्म के संभावित राजस्व और दर्शकों को ध्यान में रखते हुए एक मार्केटिंग और रिलीज़ रणनीति तय करते हैं।
3. प्रचार और मार्केटिंग
फिल्म वितरक फिल्म के प्रचार और मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभालते हैं। इसमें निम्नलिखित चीजें शामिल हैं:
- फिल्म के पोस्टर, ट्रेलर, टीज़र जारी करना।
- प्रेस विज्ञप्ति जारी करना और प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करना।
- कलाकारों और निर्देशक के साक्षात्कार।
- विभिन्न प्रचार कार्यक्रम और इवेंट आयोजित करना।
अक्सर, फिल्म को लॉन्च पार्टी, प्रेस स्क्रीनिंग और फिल्म फेस्टिवल स्क्रीनिंग के साथ रिलीज़ किया जाता है। आज की तारीख में, अधिकांश फिल्मों की अपनी वेबसाइट भी होती है।
4. डिजिटल वितरण और सिनेमाघरों तक फिल्म पहुंचाना
डिजिटल फॉर्मेट में रूपांतरण
आजकल फिल्में डिजिटल फॉर्मेट में सिनेमाघरों तक पहुंचाई जाती हैं। फिल्म का कंटेंट डिजिटल लैब में तैयार किया जाता है और हार्ड ड्राइव में स्टोर किया जाता है।
KDM (Key Delivery Message)
फिल्म को एन्क्रिप्टेड (encrypted) रूप में भेजा जाता है। इसे अनलॉक करने के लिए एक पासवर्ड जिसे KDM (Key Delivery Message) कहते हैं, की आवश्यकता होती है। यह KDM हर थिएटर के लिए अलग होता है और रिलीज़ से 24-48 घंटे पहले भेजा जाता है, ताकि सुरक्षा में कोई सेंध न लगे।
वितरण के तरीके
फिल्में आमतौर पर सैटेलाइट सिग्नल या हार्ड ड्राइव के माध्यम से सिनेमाघरों तक पहुंचाई जाती हैं। भारत में UFO Moviez जैसी कंपनियां डिजिटल वितरण सेवाएं प्रदान करती हैं।
5. सिनेमाघरों से करार (Exhibitor Agreements)
थिएटर बुकिंग
वितरक देशभर के सिनेमाघरों (जिन्हें प्रदर्शक भी कहा जाता है) के मालिकों के साथ फिल्म प्रदर्शित करने के लिए समझौते करते हैं। यह तय किया जाता है कि फिल्म कितने स्क्रीनों पर और कितने शो में चलेगी।
राजस्व का बंटवारा
वितरक सिनेमाघरों से होने वाली टिकट बिक्री में से एक निश्चित हिस्सा (आमतौर पर 50-55%) फिल्म स्टूडियो/निर्माता को देते हैं। यह अनुपात फिल्म की मांग और समझौते पर निर्भर करता है।
फिल्म रिलीज़ की मुख्य प्रक्रिया (संक्षेप में)
चरण | विवरण |
---|---|
**1. फिल्म तैयार करना** | फिल्म का निर्माण और संपादन पूरा होना। |
**2. सेंसर प्रमाणन** | CBFC से सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए आवश्यक प्रमाणपत्र प्राप्त करना। |
**3. वितरक के साथ करार** | निर्माता और वितरक के बीच वितरण अधिकारों का समझौता। |
**4. प्रचार और मार्केटिंग** | ट्रेलर लॉन्च, पोस्टर, साक्षात्कार, और अन्य प्रचार गतिविधियाँ। |
**5. डिजिटल वितरण** | फिल्म को डिजिटल फॉर्मेट में एन्क्रिप्ट कर सिनेमाघरों तक भेजना (KDM सहित)। |
**6. थिएटर रिलीज़** | तय तारीख पर फिल्म का देशभर के सिनेमाघरों में प्रदर्शन। |
यह पूरी प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि फिल्म सही तरीके से दर्शकों तक पहुंचे और सभी कानूनी और व्यावसायिक पहलुओं का पालन किया जाए। अगली बार जब आप कोई फिल्म देखें, तो इस पूरी मेहनत को याद करें जो उसे आप तक पहुँचाने में लगी है!
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